
नई दिल्ली। आज हम आपके लिए एक ऐसे शख्स की सफलता की कहानी (Success Story) लेकर आए हैं जिसने लाखों रुपए की नौकरी कुछ छोड़कर अपने गांव जाकर खुद का धंधा करना उचित समझा और इतना ही नहीं परेशानी तो हर काम करने के दौरान हमें उनसे सामना करना पड़ता है लेकिन जो परेशानियों से डर कर पीछे हट जाता है उसकी दुनिया इज्जत नहीं करती है. लेकिन जो व्यक्ति उन परेशानियों से लड़कर अपना मुकाम हासिल करता है उन्हीं को दुनिया याद रखती है।
कुछ ऐसी ही सोच है हिंदी डेरी के मालिक इंद्र चौरसिया की जिन्होंने नौकर से मालिक बनने तक का सफर 29 लाख की नौकरी को छोड़कर तय किया। और आज के समय में उनकी ब्रांड के तीन आउटलेट उनके ही शहर में खुल चुके हैं। जिसकी मदद से वह सालाना करीब 2 करोड रुपए का टर्नओवर निकाल लेते हैं। अगर आप भी इनकी कहानी जानना चाहते हैं तो सही खबर पढ़ रहे हैं।
कौन है इंद्र चौरसिया ?
बिहार के एक छोटे से शहर पूर्णिया के रहने वाले इंद्र चौरसिया आज के समय में एक सफल उद्यमी है. हालांकि उनकी उनकी ब्रांड का बहुत बड़ा नाम नहीं है लेकिन अपने ही क्षेत्र में उच्च गुणवत्ता की प्रोडक्ट बेचने के लिए उनकी ब्रांड बहुत ही प्रसिद्ध है. इसका नाम हिंदी डेरी है। जिसकी मदद से यह लगभग 40 लोगों को नौकरी दे रहे हैं और आगे भी नौकरी देने का काम करने वाले हैं। अर्थात सही और सटीक शब्दों में देखा जाए तो इंद्र चौरसिया (Indra Chaurasiya Success Story) एक सफल उद्यमी है। जिनकी कहानी आपको जानना चाहिए।
Indra Chaurasiya Success Story
इंद्र चौरसिया बिहार के पूर्णिया शहर के रहने वाले हैं. अपने क्षेत्र में हिंदी डेरी नाम की एक ब्रांड को चला रहे हैं. उनकी सफलता की कहानी कुछ इस प्रकार ही है की हर एक बिजनेसमैन को शुरुआत में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है जो व्यक्ति उन परेशानियों से लड़कर अपना मुकाम हासिल कर लेता है लोग उसी को याद रखते हैं। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है इंद्र चौरसिया ने. जो अपनी प्रारंभिक पढ़ाई पूर्णिया शहर में ही पूरी करने के बाद हायर स्टडीज के लिए दिल्ली चले गए थे.

अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली में उन्होंने खर्च चलाने के लिए नौकरी करना शुरू कर दिया था। इतना ही नहीं उनकी नौकरी में सालाना 39 लाख रुपए का पैकेज था। यानी कि वह 1 साल में 39 लाख रुपए कमा लेते थे। उनका मानना था कि इसका फायदा ही क्या जब तक उन्हें नौकर बनकर इतना लाखों रुपए कामना पड़े। इसीलिए उन्होंने मलिक वाली सोच को अपने दिमाग में लेते हुए नौकरी को लात मार कर अपने निवास स्थान पूर्णिया आ गए।
कई परेशानियों का किया सामना
अगर आप कोई काम करते हैं और उसमें आपको परेशानी नहीं आती है तो इसका सीधा सा मतलब है कि आप कुछ नया करने की कोशिश नहीं कर रहे हैं. या फिर सही रास्ते पर नहीं चल रहे हैं. अगर हम बिजनेस वर्ल्ड में कुछ नया करना चाहते हैं तो हमें उसके हिसाब से बड़ी-बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। साल 2013 में इंद्र 84 आने नौकरी छोड़ने के बाद बिहार पूर्णिया शहर में आकर गए पालकर एक दूध डेरी चलाने की कोशिश की थी।
उन्होंने दूध को लोकल स्तर पर बेचना शुरू किया लेकिन उसमें कोई खास रिस्पांस नहीं मिला इसके बाद अपने डेरी में रसगुल्ला और रसमलाई जैसी मिठाइयों को साथ-साथ स्नेक्स भी रखना शुरू कर दिया। इसकी वजह से लोगों को उनकी मिठाइयों का और स्नेक्स का टेस्ट बहुत अधिक पसंद आया । क्योंकि इनके प्रोडक्ट की क्वालिटी काफी अच्छी थी जिसकी वजह से लोगों बार-बार उनकी दुकान पर आने लगे। उन्होंने अपने व्यवसाय का नाम हिंदी देरी रखा था ।
40 लोगों को दे रहे हैं नौकरी
धीरे-धीरे इनकी मिठाइयों की और स्नेक्स की डिमांड बढ़ने लगी अर्थात खुद के प्रोडक्ट की डिमांड बढ़ने की वजह से यह अपने ही शहर में तीन आउटलेट खोल चुके हैं. तीनों आउटलेट के साथ यह करीब 40 लोगों को नौकरी पर रखे हुए हैं। इसका मतलब यह है कि इन्होंने 40 लोगों के परिवारों को अपने ऊपर जिम्मेदारी पर पाल रहे हैं। इसकी बदौलत आज उनकी सभी दुकान का टर्नओवर कुल मिलाकर सालाना 2 करोड रुपए के आसपास रह जाता है। वह नई उद्यमियों को यही सलाह देना चाहते हैं कि हर किसी को नौकर से मालिक बनने का सफर जरूर तय करना चाहिए।

मेरा नाम विशाल ओझा है. मैने Mathematics से B.sc किया हुआ है। मुझे विज्ञान की अच्छी जानकारी है। इसके अलावा में बिजनेस, मौसम या टेक्नोलॉजी का ज्ञान रखता हूं। इंशॉर्टखबर पर इसी फील्ड में योगदान दे रहा हूं।