Bhagwat Geeta: मनुष्य स्वयं पाप करने के लिए क्यों हो जाता है विवश, श्री कृष्णा ने खुद बताया

Bhagwat Geeta का उपदेश
Bhagwat Geeta का उपदेश
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Bhagwat Geeta: भगवत गीता के बारे में तो हम जानते हैं. कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण गीता में मनुष्य के सभी सवालों का जवाब दिया है. अगर आप किसी दुविधा में फंस जाते हैं और आपको उसका जवाब नहीं मिलता है या उस दुविधा का आपको सॉल्यूशन चाहिए भागवत गीता आपके लिए बहुत ही मदद गार साबित होने वाली है. भगवत गीता का उपदेश श्री कृष्ण जी के द्वारा महाभारत के समय कुरुक्षेत्र में अर्जुन को दिया गया था जब वह मोह – माया में फंसे थे ! श्री कृष्ण जी ने कहा था कि धर्म की रक्षा के लिए अपनों से युद्ध करना पड़ता है।

Bhagwat Geeta का उपदेश

आज के समय वर्ग के लोगों के लिए भागवत गीता बहुत ही अच्छी किताब साबित हो रही है. इसमें मनुष्य के सभी सवालों के जवाब तो मौजूद होते हैं लेकिन क्या आपने सोचा है कि कई बार मनुष्य अपनी कामवासना की वजह से पाप करने के लिए खुद ही विवश हो जाता है इसके पीछे बहुत श्री कृष्ण ने बताया है. इसके बारे में जानकारी पंकज त्रिपाठी आपकी ज्योतिष आचार्य के द्वारा न्यूज़ 18 को दी गई है. ऊपर वाले कहा कि भागवत गीता एक ऐसा ग्रंथ है. जो वर्तमान में उतना ही कारगर है ।

जितना की युद्ध के समय अर्जुन ने भगवत गीता का उपदेश सुनकर जो तुम्हें विजय हासिल की थी उसी प्रकार आज के मनुष्य भी भगवत गीता को पढ़कर अपने इस जीवन को सार्थक बना रहे हैं अर्थात उन्हें जो भी परेशानी कम करने में आती है। उस समय मोटिवेशन के लिए सबसे अच्छी किताब को भगवत गीता ही माना गया है। इसीलिए अगर आप किसी भी कविता में फंस जाते हैं और सही गलत का अंतर आपको समझ में नहीं आता है तो ऐसी स्थिति में आप लोगों को भागवत गीता‌ (Bhagwat Geeta) एक बार जरूर पढ़ना चाहिए.

मनुष्य स्वयं पाप करने के लिए क्यों हो जाता है विवश?

जब भगवान श्री कृष्ण के द्वारा अर्जुन को उनके सवाल के जवाब के रूप में बताया था कि आखिर मनुष्य न चाहते हुए भी पाप करने के लिए क्यों विवश हो जाता है। इतना ही नहीं अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से युद्ध में गीता के उपदेश देते हुए समय प्रश्न किया था कि “केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः। अनिच्छन्नपि वाष्र्णेय बलादिव नियोजितः ।। यह सवाल जब अर्जुन श्री कृष्ण की पूजा तब उन्होंने इसके स्वरूप में जवाब भी दिया है.

न चाहते हुए भी मनुष्य हो जाता है विवश

ज्योतिष आचार्य इस संबंध में कहते हैं कि मनुष्य कामवासना और किसी वस्तु को पाने की मोह की वजह से पाप करने के लिए विवश हो जाता है. किसी भी चीज को पाने की इच्छा मनुष्य में क्रोध उत्पन्न कर देती है और क्रोध की वजह से ही मनुष्य की इंद्रियां अनियंत्रित हो जाती है जिसकी वजह से वह किसी भी अमानवीय कृत्य को करने के लिए मजबूर हो जाता है. आगे भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को उदाहरण देते हुए समझाते है कि जिस प्रकार धुआं जलती हुई अग्नि को ढक देता है।

इस प्रकार कामवासना क्रोध और लालच इत्यादि मनुष्य के ज्ञान पर पर्दा डाल देती है. जिसकी वजह से वह ना चाहते हुए भी पाप करने के लिए भी विवश हो जाता है. श्री कृष्ण ने इससे बचने के लिए भी उपाय बताया हुआ है वह कहते हैं कि अगर कोई मनुष्य आसक्ति के प्रभाव में यह सब करता है।‌ अतः उसकी इन सब का अधीन नहीं होना चाहिए. तभी किसी भी प्रकार का पाप करने से बचा जा सकता है.