नागा साधु और अघोरी बाबा के बीच क्या अंतर होता है?

नागा साधु और अघोरी बाबा में अंतर
नागा साधु और अघोरी बाबा में अंतर
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Difference between Naga Sadhu and Aghori Baba: पूरी दुनिया में सबसे प्राचीन धर्म माना जाता है तो वह सनातन धर्म और सनातन धर्म की संस्कृति भारत से शुरू होती है भारत में ही इस धर्म के संबंध में ऐसी ऐसी बातें होती है जो हर किसी की आंखों पर पर्दे खोलकर चौंक जाने पर मजबूर कर देती है. हमारी संस्कृत में नागा साधु और अघोरी के बारे में तो आपने सुना ही होगा.

जो व्यक्ति इस संसार की मोह माया दुख का पृथक कर देता है. जो व्यक्ति मोह माया का त्याग कर देता है तो वह सन्यासी कहलाता है. भगवान की भक्ति करने की भी अलग-अलग तरीके होते हैं लेकिन नागा साधु का और अघोरी बाबा का कॉन्सेप्ट की एकदम अलग है. क्योंकि आमतौर पर साधु संत भगवान की भक्ति करते रहते हैं लेकिन यह नागा साधु और अघोरी बाबा भगवान की भक्ति करने के अलावा उनके वेशभूषा एकदम अलग होती है यह भगवान शिव के भक्त होते हैं.

नागा साधु कौन होते हैं?

अगर बात नाराज साधु की करें तो यह अनूपपुरी गोसाई के अनुयायी माने जाते हैं. यह एक सब भक्त थे जो संन्यास की तरह अपना जीवन व्यतीत करते हैं भगवान शिव को अपना संपूर्ण विवेक समर्पित करके यह कुछ इस प्रकार कहते हैं जो आप मानव जाति बिल्कुल भी नहीं कर पाती है. पूरे शरीर पर किसी मरे हुए शरीर की भस्म को लगाकर अपना जीवन यापन कर देते हैं ।

और बालों को हमेशा जटाधारी के रूप में भगवान शिव की तरह रखने की कोशिश करते हैं. इतना ही नहीं नागा साधु जटाधारी सन्यासी के पंथ के सदस्य माने जाते हैं. अन्य आमतौर पर कुंभ के मेले में देखा जा सकता है जो धार्मिक और बड़े लेवल पर किए जाने वाला मेला होता है। उज्जैन में आयोजित होने वाले कौन से जिले में भारत के कोने कोने से मेले में शामिल होने के लिए आते हैं. और भगवान शिव की अटूट भक्ति ने विश्वास रखते हैं. नागा साधु भगवान शिव की तरह ही रहना पसंद करते हैं.

अघोरी बाबा कौन होते हैं?

अघोरी बाबा की बातें तो यह भी बिल्कुल भगवान शिव की तरह ही रहना पसंद करते हैं और अपने ही काम में हमेशा साधना में व्यस्त रहती है. यह अपना ज्यादा से ज्यादा समय भगवान शिव की भक्ति में साधना और ध्यान अवस्था में बताते हैं ऐसे साधु संतों को अघोरी बाबा कहा जाता है जो तंत्र विद्या के बादशाह कहीं जा सकते हैं. अक्सर अन्य श्मशान घाट में देखा जाता है.

लेकिन यह सभी श्मशान घाट में नहीं बल्कि काशी मथुरा में देखे जाते है. आमतौर पर ऐसा कहा जाता है कि अघोरी बनने के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है कि घृणा का त्याग करना. आमतौर पर मनुष्य दिन वस्तुओं से घृणा करता है. इनको अघोरी अपना लेते हैं. उदाहरण के लिए मरे हुए व्यक्ति की शरीर की राख को लिया जा सकता है. आमतौर पर मनुष्य इसको छूना पसंद नहीं करता है लेकिन अघोरी बाबा इसे अपने पूरे बदन में लगाते है. और बाबा भोलेनाथ की भक्ति में हमेशा ले लेते हैं जो शमशान घाट के उस पार है।‌

नागा साधु और अघोरी बाबा में अंतर

नागा साधु और अघोरी बाबा में अंतर की बात करें तो दोनों में कोई खास अंदर देखने के लिए नहीं मिलता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दोनों ही मांसाहारी होते हैं अर्थात दोनों ही मांस का सेवन करते हैं और कुछ मान्यताओं में तो यह भी माना जाता है कि कुछ नागा साधु शाकाहारी भी होते हैं. लेकिन कुछ और अघोरी बाबा मानव का भी मांस खाने में विश्वास रखते हैं.

किसी व्यक्ति को अघोरी बाबा या नारा साधु बना है तो इसके लिए एक-दो साल नहीं होती 12 साल से अधिक समय लग जाता है उनको काफी लंबे सालों तक तपस्या करनी होती है और शिव भगवान की भक्ति करनी होती है. इतना ही नहीं कई सालों तक शमशान में रहकर भगवान शिव का ध्यान करना होता है.

आमतौर पर देखा जाए तो दोनों के वेशभूषा और दिखावे में अंतर बहुत अधिक होता है. क्योंकि नागा साधु नग्न अवस्था में होते हैं. जबकि अघोरी बाबा अपने शरीर के गुप्त अंगों को ढकने के लिए किसी जानवर की खाल के कपड़े पहनना पसंद करते हैं जो की बिल्कुल भगवान शिव की तरह है. यह श्मशान घाट की राख को अपने शरीर पर लगाने के साथ मनुष्य की हड्डियों का इस्तेमाल दैनिक दिनचर्या में करते हैं.


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