गुरु गोरखनाथ की मृत्यु कैसे हुई? जाने संपूर्ण जानकारी

गुरु गोरखनाथ की मृत्यु कैसे हुई ?
गुरु गोरखनाथ की मृत्यु कैसे हुई ?
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नई दिल्ली ।‌ अगर आप भी इंटरनेट पर गुरु गोरखनाथ की मृत्यु कैसे हुई? यही खोज रहे हैं तो हम आपकी जानकारी के लिए बता दें कि गुरु गोरखनाथ भारत की महान ऋषि मुनियों में से एक तेज जिन्होंने मुगलों के द्वारा किए जाने वाले अत्याचार के समय भी अपना मुक्ति योगदान दिया था. भारत की यह भूमि किसी मुगल कि नहीं बल्कि हमारे महान तपस्वी ऋषि मुनियों की है जिन्होंने इसको पवित्र करने के लिए अपना स्वयं का बना ध्यान दे दिया है उनमें से ही एक गुरु गोरखनाथ जी हैं। जो कि उत्तर प्रदेश के गोरखनाथ शहर में रहते थे।

कौन है गुरु गोरखनाथ ‌?

गुरु गोरखनाथ भारत के महान उन ऋषि मुनियों में से एक थे, जो भारत की महत्वता के लिए जाने जाते हैं. गोरखपुर शहर में इनका मंदिर काफी प्रसिद्ध है लोग दर्शन करने के लिए जाते रहते हैं. अपने जीवन काल में इन्होंने कई सारे ग की रचना की इसके अलावा पूरे भारत का भ्रमण भी किया है जिसकी वजह से यह एक महान तपस्वी संत हुआ करते थे. ऐसा माना जाता है कि गुरु गोरखनाथ का जन्म प्रत्येक युग में होता है। ‌

बहुत ही पौराणिक समय में यह विक्रमादित्य के समय के आसपास के माने जाते हैं।‌ अर्थात प्रथम शताब्दी से ही गुरु गोरखनाथ राज्य भरतरी तथा उनके छोटे भाई विक्रमादित्य के समय के माने जाते हैं। ‌ इनके कई सारे शिष्य थे और इनमें से एक शिष्य का नाम भैरवनाथ था. इसके बारे में अपने बॉलीवुड की एक माता की मूवी जरूर देखी होगी. जिसका उधार माता वैष्णो देवी के द्वारा किया गया था। ‌ यह उसी समय का काल है। पुराना कौन सा ऐसा भी माना जाता है कि गोरखनाथ भगवान शिव के अवतार हैं। ‌

गुरु गोरखनाथ की मृत्यु कैसे हुई ?

लेकिन ऋषि गोरखनाथ की मृत्यु से संबंधित आज भी कई सारे लोगों को जानकारी नहीं है. पुराणों के अनुसार गोरखनाथ जी का जन्म नहीं हुआ है. अर्थात यह एक अवतरित ऋषि हैं, जिन्हें शिव का अवतार माना जाता है. इसी वजह से उनकी मृत्यु नहीं हुई है बल्कि इन्होंने खुद ही समाधि ली है। उनकी समाधि आज भी उत्तर प्रदेश की गोरखपुर शहर में मौजूद है और उनके नाम पर ही गोरखपुर शहर का नाम रखा गया है। वहीं पर गोरखपुर मंदिर भी स्थित है जहां पर लाखों भक्त उनके दर्शन करने के लिए जाते हैं। इस मंदिर में गोरखनाथ जी की एक मूर्ति भी स्थित है। इस मूर्ति में वह ध्यान अवस्था में बैठे हुए है।‌

गोरखनाथ जी का जन्म

पुराणों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि गुरु गोरखनाथ हर युग में अवतरित हुए हैं. अर्थात विक्रमादित्य के समय के साथ-साथ त्रेता युग में भगवान श्री राम के समय की भी है. त्रेता युग में सबसे पहली बार उन्होंने अवतार लिया. अर्थात गुरु गोरखनाथ जी को भगवान राम की राज्य अभिषेक में आमंत्रित भी किया गया था. त्रेता युग में जन्म लेने के बाद द्वापर युग में एक बार फिर से इन्होंने अवतार लिया.

इस समय यह गुजरात के जूनागढ़ की गिरनार पर्वत के गोरख मढ़ी में तप क्या करते थे। ‌ इस स्थान की मान्यता यह है कि यहीं पर भगवान श्री कृष्णा और रुक्मणी जी एक साथ बंधन में बंदन हुए थे और उस समय गुरु गोरखनाथ उनके विवाह में शामिल हुए थे। इसके अलावा कलयुग में भी गुरु गोरखनाथ की जन्म से संबंधित कथा यह है कि बप्पा रावल नाम के राजकुमार जंगल में सैर करने के लिए निकले थे।

कलयुग में गुरु गोरखनाथ जी का जन्म

तो उसे समय घूमते घूमते यह एक ऋषि को देखते हुए उनकी तबस्थाना से अत्यंत प्रभावित होते हैं और उनके जो मुख पर तेज था उसको देखकर वहीं पर रोक कर उनकी सेवा करने की ठनते हैं. उनकी गैया चराते हैं। ‌ शहर से कोई और नहीं बल्कि गोरखनाथ जी ही है. जब इन ऋषि की आगे खुलती है तब वह बप्पा रावल की सेवा से प्रसन्न होकर बलराम स्वरूप उन्हें एक तलवार देते हैं इस तलवार के इस्तेमाल करके ही मलेच्यो को हराकर चित्तौड़ राज्य की स्थापना की थी।


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