महिला नागा साधु कैसी वेशभूषा पहनती है?

महिला नागा साधु कैसी वेशभूषा पहनती है
महिला नागा साधु कैसी वेशभूषा पहनती है
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अगर आप भी जानना चाहते हैं कि महिला नगर साधु कैसे बनते हैं और उनकी वेशभूषा क्या होती है ? अर्थात कैसे रहते हैं यह सब? तो INshortkhabar की इस पूरी खबर को पढ़ सकते हैं. इस आर्टिकल में हम आपको महिला नागा साधु के बारे में बताने जा रहे हैं. जिन्हें माई, नागिन और अवधूतानी जैसे ना मौसी भी जाना जाता है इसके अलावा उनकी वेशभूषा क्या होती है? यह कैसे निवास करती है क्या यह पुरुषों की तरह ही रहती है? इन सब के बारे में भी जानने के लिए आपको इस आर्टिकल के अंतर्गत मिलने वाला है.

महिला नागा साधु कौन होती है?

सनातन धर्म में अलग-अलग प्रकार के साधु संत महात्मा पाए जाते हैं सबको अपने हिसाब से उनके नियम कानून का पालन करने का अधिकार होता है. लेकिन सबसे कठिन की बात करें तो नागा साधु और अघोरियों का रहन-सहन उनकी वेशभूषा सबसे कठिन मानी जाती है. ऐसे में नागा साधु महिलाएं भी बन सकती है लेकिन इसके लिए कुछ कंडीशन होती है ।

जिनको फॉलो करना होता है. जब एक महिला नागा साधु बनने का निर्णय लेती है तो उसको भी सालों तक तपस्या करनी पड़ती है और कठिन परिस्थितियों के बाद ही उसे अपनी ईस्ट गुरुदेव के द्वारा नागा साधु बनने का सौभाग्य प्राप्त हो जाता है. और आपको बता देना चाहते कि महिला नागा साधु कई सारी है जो इस समय होती है. देखने में पुरुषों की तरह यह भी बड़ी सख्त होती है..

महिला नागा साधु कैसी वेशभूषा पहनती है?

जैसा कि आपको पता है कि नागा साधु और अघोरी की वेशभूषा में काफी बड़ा अंतर माना जाता है. इस आर्टिकल के अंतर्गत हम आपको बताने वाले जो महिला नागा साधु के संबंधित रहस्यमई बातें जो आपको शायद ही पता हो? महिला नागा साधु भगवान शिव को अपना पूरा जीवन समर्पित कर देती है. जब उनको नागा साधु बनाया जाता है तो माता की उपाधि दी जाती है।

रही बात कपड़ों की तो कपड़ों का संबंध ऐसा माना जाता है कि इनको अपने बदन पर केवल एक ही वस्त्र पहनना होता हुआ. यह पत्र ना तो सुला हुआ होता है और नहीं रंग-बिरंगा होता है अर्थात केवल भगवा रंग ही होता है. इसके अलावा रोजाना ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है.. लगभग 12 साल की अवधि के दौरान जो भी है ब्रह्मचर्य का पालन करने में सफल हो जाती है तो इन्हें महिला साधु की उपाधि दे दी जाती है। ‌

इतना ही नहीं इन्हें कठिन तपस्या से गुजरने के साथ-साथ सुबह जल्दी उठकर ठंडा जलते स्नान करना होता है और पूरे दिन भगवान से की आराधना में लिंग रहने के पश्चात ही शाम को दत्तात्रेय की पूजा का विधान माना गया है. इतना ही नहीं जानकारी के मुताबिक महिला नागा साधु, नागा साधु बनने से पहले अपना खुद का ही पिंडदान करना पड़ता है और पहले के जीवन को त्याग करने के पश्चात अपने खुद के ही बोल स्वयं के हाथों से उखाड़ने पड़ते हैं इसके बाद ही वह नागा साधु बन पाती है.


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