
नई दिल्ली । कामाख्या देवी के मंदिर: आप लोगों ने कई सारे मंदिर देखे होंगे हिंदू धर्म में हर एक मंदिर को लेकर कोई ना कोई ऐसी मान्यता रहती है कि इसकी वजह से हिंदू धर्म के लोगों का अपने भगवान पर विश्वास अटूट हो जाता है. आज हम आपको उत्तर प्रदेश की गुवाहाटी शहर के नीलांचल पर्वत पर स्थित एक ऐसे कामाख्या देवी के मंदिर के बारे में बताने वाले हैं जिसको लेकर ऐसी मान्यता है कि आप लोगों के होश उड़ जाएंगे।
कामाख्या देवी का मंदिर कई सारे करण के लिए प्रसिद्ध है. यहां से पूरी गुवाहाटी की सुंदरता को तो देखा ही जा सकता है इसके अलावा ऐसा माना जाता है कि पौराणिक काल में यह तांत्रिक विधाओं का सबसे बड़ा केंद्र हुआ करता था। इसके अलावा ऐसी मान्यता है कि स्थानीय पंडित के अनुसार बताया गया है कि यहां पर जिस दिन अंबुबाची मेले का आयोजन किया जाता है। उसे समय माता रजस्वला (मासिक धर्म) से गुजर रही होती है. इसके अलावा भी ऐसी कई सारे रहते हैं जो आपको इस मंदिर के बारे में जानने के लिए कुछ तो करते हैं।
कहां है कामाख्या देवी का मंदिर
दरअसल आपको बता दे की कामाख्या देवी का मंदिर भारत के असम राज्य में गुवाहाटी शहर के नीलांचल पर्वत पर स्थित है. यहां पर प्रतिदिन हजारों भक्त अपनी आस्था को लेकर माताजी के दर्शन करने के लिए जाते हैं इसके अलावा आपको बता दें कि इस मंदिर को लेकर अलग-अलग प्रकार की मान्यता है. यहां से पूरे गुवाहाटी के दर्शन किए जा सकते हैं। देवी के मंदिर में अंबुबाची मेले का आयोजन भी किया जाता है। इसके बाद मंदिर के द्वारा पुनः भी खुल जाते हैं। और मेले की शुरुआत के समय ही मंदिर के द्वारा ऑटोमेटिक बंद होने लगते हैं यह करीब 3 दिन तक चलता है। आईए जानते हैं इसके बारे में और जानकारी।
कैसे हुई कामाख्या देवी के मंदिर की स्थापना
स्थानीय लोकमान्यता और पंडित जी के अनुसार बताया गया है कि कामाख्या देवी के मंदिर की स्थापना माता सती के 52 शक्तिपीठों की बदौलत हुई है. दरअसल जब माता सती अपने पिता दक्ष के कार्यक्रम में उनके बिना बुलाए शामिल हो जाती हैं तो उसे वक्त दक्ष के द्वारा भगवान शिव का अपमान कर दिया जाता है जिसके कारण माता सती क्रोधित हो जाती है और वह अपने दिए का त्याग जलते हुए हवन कुंड में कर देती हैं।

तत्पश्चात् भगवान शिव जी को जब इसका आवास होता है तो उन्हें इतना गुस्सा आ जाता है कि वह माता सती की आधे जले हुए शरीर को लेकर संसार में इधर-उधर भटकते रहते हैं। ऐसा करने के दौरान उनका क्रोध बढ़ता ही जाता है। इस बात से परेशान होकर भगवान विष्णु जी के द्वारा अपने सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल करके माता सती के शरीर के 52 टुकड़े कर दिए थे. यह टुकड़े भारत के अलग-अलग हिस्सों में जाकर गिरे हुए थे. कहां जाता है कि जो हिस्सा नीलांचल पर्वत पर गिरा हुआ था, वह माता सती का योनी वाला भाग था।
माता सती की प्रतिमा होती है रजस्वला
इसीलिए माता सती तीन दिनों के लिए मासिक धर्म के दौरान इस मंदिर के पट को बंद रखा जाता है और इस दिन अंबुबाची का मेले का आयोजन रखा जाता है। इतना ही नहीं बल्कि गुवाहाटी के समस्त मंदिरों को भी इस दिन बंद रखा जाता है और किसी भी प्रकार का कोई धार्मिक कार्य तीन दोनों के दौरान बिल्कुल भी नहीं होता है। माता के मासिक धर्म समाप्त हो जाने के बाद चौथे दिन मंदिर के दरवाजे खोल दिए जाते हैं और यह मंदिर में पूजा पाठ – हवन कुंड करने से पहले माताजी को स्नान भी कराया जाता है। इसके बाद आम जनता के लिए दर्शन हेतु इस मंदिर को खोल दिया जाता है।

इन्शोर्टखबर एक डिजिटल न्यूज़ वेबसाइट है. जिस पर आपको अपने फील्ड के एक्सपर्ट के द्वारा आसान शब्दों खबरें पढ़ने को मिलती है. इस पर विभिन्न विषय पर खबर पढ़ सकते है.